बैंडिट क्वीन

फिल्म देखा तो स्तब्ध रह गया था मै, मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा हो सकता है. किसी एक जाति की ज्यादती की तो बात ही नहीं है, क्योकि जो भी शीर्ष पर रहा है, उससे ऐसी ज्यादतियां हुई हैं.पर मानवता सबसे कम मानवों में है, कभी-कभी ऐसा ही लगने लगता है…….

खमोश सपाट बचपन, बच्ची नही बोझ थी.
सो सौप दी गयी, फ़ेरे कर सात, हैवानियत को…

उसने नोचा, बचपन फ़िसलकर गिर पड़ा.
बड़ी हो गयी वो.

बड़ी हो गयी तो उनकी खिदमत मे तो जाना ही था.

..इन्कार…,तो खींच ली गयी कोठरी के अन्दर.. ठाकुर मर्दानगी आजमाते रहे..
खड़ी हो गयी वो.

तो उन्होने उसे वही नंगी कर दिया..
जहां कभी लंबे घूंघट मे पानी भरती थी.

उन्होने उसके कपड़े उतार लिये..
तो उसने भी उतार फ़ेका..लाज समाज का चोला..
सूनी सिसकियों ने थाम ली बन्दूक. पांत मे बिठा खिलाया उन्हे मौत का कबाब..

क्योकि उन्होने उसे बैंडिट क्वीन बना दिया था….

चित्र साभार: गूगल

5 responses to this post.

  1. यहाँ आज भी ज्यादा कुछ नही बदला…………

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  2. श्रीश जी,

    ये फिल्म तो बहुत पहले आई थी…क्या आपने अब डीवीडी मंगा कर देखी…

    जय हिंद…

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