लाख सोचें ना हो वो रूबरू यारों,
सोच लेने के भरम में दुनिया यारों.
साथ देते रहे हर लम्हा मुस्काते हुए,
शाम हर रोज गिला करके सो जाती यारों.
मेरी हर साँस फासले कम करने में गयी,
हर सहर, मंजिलें अपनी खो जाती यारों.
जबसे जागा है, सुना है, लोगो को गाते हुए,
रूबरू वो हो तो आवाज खो जाती यारों.
आपने फ़रमाया…