क्योंकि वो ‘गिरा’ हुआ था. ……
पर ये ख़ुद तो नही गिरा होगा . ..
इसका सौन्दर्य ,इसका घाती.
तोड़ा…; पर सजाया नहीं इसे कहीं. …
मुरझाना-सूखना तो सहज था;
पर इस तरह,रौदा जाना ….. ,,…
किसी ने इसे रास्ते में गिरा दिया. ..,,,..
‘ठीक उन लड़कियों की तरह………………….’..,..”
चित्र साभार:गूगल
Posted by sada on अक्टूबर 28, 2009 at 10:46 पूर्वाह्न
पर ये ख़ुद तो नही गिरा होगा . ..
इसका सौन्दर्य ,इसका घाती.
तोड़ा…; पर सजाया नहीं इसे कहीं.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
Posted by om arya on अक्टूबर 28, 2009 at 12:10 अपराह्न
मार्मिक स्पर्श के साथ लिखी रचना…………जिसे पढ्कर महसूस किया जा साकता है!
Posted by albela khatri on अक्टूबर 28, 2009 at 2:08 अपराह्न
गज़ब !
एक अलग तरह की अभिनव कविता………..
अभिनन्दन !
Posted by Ranjana on अक्टूबर 28, 2009 at 4:30 अपराह्न
Bhavpoorn ……….
Posted by loksangharsha on नवम्बर 2, 2009 at 5:41 अपराह्न
nice