मैंने देखा ..’बुढ़ापे’ को,
सड़क के एक किनारे दूकान सजाते हुए.
ताकि..
रात को पोते को दबकाकर कहानी सुनाने का ‘मुनाफा’ बटोर सके.
एक ‘बुढ़ापा’ ठेला खींच रहा था..
ताकि..
अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को
थाली सरकाना भार ना लगे.
मैंने समझा; वो ‘बुढ़ापा’ दुआ बेचकर
कांपते हाथों से सिक्के बटोर रहा था ..; क्यों…?
ताकि..
जलते फेफड़ों के एकदम से रुक जाने पर,
बेटा; कफ़न की कंजूसी ना करे…..
Posted by mithilesh dubey on नवम्बर 19, 2009 at 7:38 अपराह्न
पाठक जी आपकी ये रचना दिल को छु गयी, बेहद ही मार्मिक रचना लगी । और वहीं अगर देखा जाये तो आपकी ये कविता कहीं न कहीं सच्चाई भी बयां कर रही है ।
Posted by nirmla.kapila on नवम्बर 19, 2009 at 7:39 अपराह्न
ताकि..
अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को
थाली सरकाना भार ना लगे.
मैंने समझा; वो ‘बुढ़ापा’ दुआ बेचकर
कांपते हाथों से सिक्के बटोर रहा था ..; क्यों…?
ताकि..
जलते फेफड़ों के एकदम से रुक जाने पर,
बेटा; कफ़न की कंजूसी ना करे…..
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति लेकिन जीवन का सच बहुत अच्छी रचना है शुभकामनायें
Posted by Mahfooz on नवम्बर 19, 2009 at 9:55 अपराह्न
अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को
थाली सरकाना भार ना लगे.
मैंने समझा; वो ‘बुढ़ापा’ दुआ बेचकर
कांपते हाथों से सिक्के बटोर रहा था ..; क्यों…
bahut hi achchi aur saarthak post….. dil ko chhoo gayi……..
Posted by समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ वाले on नवम्बर 19, 2009 at 10:25 अपराह्न
बहुत मार्मिक रचना, भावुक कर गई.
Posted by manhanvillage on नवम्बर 20, 2009 at 4:23 पूर्वाह्न
बुजुर्गों में संसार और सांसारिक चीजों का इतिहास छुपा होता है हमे इन्हे पूजना और इनसे कुछ सबक लेना चाहिये क्योंकि हम भी कल को…………………..बुजुर्ग आइना होते है जीवन के बस आप को पढ़्ना आता हो फ़िर क्या है पढ़ ली जिये संसार के सारे दुखों और सुखों को इनकी गहरी आंखों व झुर्रिदार चेहरे में, ये बुजुर्ग ही तो हमारा इतिहास है और हमें अपना अतीत तो याद ही रखना चाहिये और इसे सम्रक्षित करने की जी तोड़ कोशिश भी फ़िर तो यहां कुछ भी स्थिर नही है किन्तु जब तक बचा ले हम अपने इन अतीतों को।
Posted by manhanvillage on नवम्बर 20, 2009 at 7:34 पूर्वाह्न
very nice
Posted by Krishna Kumar Mishra on नवम्बर 20, 2009 at 7:42 पूर्वाह्न
good
Posted by Krishna Kumar Mishra on नवम्बर 20, 2009 at 7:45 पूर्वाह्न
bahut khoob
Posted by jayantijain on नवम्बर 21, 2009 at 10:29 पूर्वाह्न
superb,old is gold but now it has sold
Posted by shreesh k. pathak on नवम्बर 21, 2009 at 10:33 पूर्वाह्न
u r absolutely right..