Archive for the ‘Uncategorized’ Category

रूबरू वो हो तो

लाख सोचें ना हो वो रूबरू यारों,

सोच लेने के भरम में दुनिया यारों.


साथ देते रहे हर लम्हा मुस्काते हुए,

शाम हर रोज गिला करके सो जाती यारों.


मेरी हर साँस फासले कम करने में गयी,

हर सहर, मंजिलें अपनी खो जाती यारों.


जबसे जागा है, सुना है, लोगो को गाते हुए,

रूबरू वो हो तो आवाज खो जाती यारों.


ताकि.

मैंने देखा ..’बुढ़ापे’ को,

सड़क के एक किनारे दूकान सजाते हुए.

ताकि..

रात को पोते को दबकाकर कहानी सुनाने का ‘मुनाफा’ बटोर सके.

एक ‘बुढ़ापा’ ठेला खींच रहा था..

ताकि..

अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को

थाली सरकाना भार ना लगे.

मैंने समझा; वो ‘बुढ़ापा’ दुआ बेचकर

कांपते हाथों से सिक्के बटोर रहा था ..; क्यों…?

ताकि..

जलते फेफड़ों के एकदम से रुक जाने पर,

बेटा; कफ़न की कंजूसी ना करे…..

तेरा ना होना

 

“…..आज इक बार फिर तेरा ना

होना नागवार गुजरा है.

वीरानी शाम में आशिक हवाओं ने मुझे

बदनाम समझा है.

पुराने जख्म अब पककर,मलहम से हाथ चाहेंगे.

सनम आ जाए महफ़िल में ,दुआं दिन रात मांगेंगे.

अभी इक दर्द का लश्कर सीने के पर उतरा है….

 

कहूँ साजिश सितारों की या फिर बेदर्द वक़्त ही है.

सनम ने ख़ुद मेरे लिए जुदाई की तय सजा की है.

कशमकश हो गई बेदम,हवाओं पर आसमां का पहरा है……….”

 

….वो लड़कियां


“पाँव ;फूल पर आ गया ,

क्योंकि वो ‘गिरा’ हुआ था. ……

पर ये ख़ुद तो नही गिरा होगा . ..

इसका सौन्दर्य ,इसका घाती.

तोड़ा…; पर सजाया नहीं इसे कहीं. …

मुरझाना-सूखना तो सहज था;

पर इस तरह,रौदा जाना ….. ,,…

किसी ने इसे रास्ते में गिरा दिया. ..,,,..

 

‘ठीक उन लड़कियों की तरह………………….’..,..”

 

चित्र साभार:गूगल

“…मुझमे तुम कितनी हो..?”


हर आहट, वो सरसराहट लगती है,

जैसे डाल गया हो डाकिया; चिट्ठी

दरवाजे के नीचे से.

अब, हर आहट निराश करती है.

हर महीने टुकड़ों में मिलने आती रही तुम

देती दस्तक सरसराहटों से .


सारी सरसराहटों से पूरी आहट कभी ना बना सके मै.


तुम्हारे शब्दों से बिम्ब उकेरता मै,

तुम्हे देख पाने के लिए…कागज पर कूंची फिराना जरूरी होता जा रहा है.


कूंची जितनी यानी उमर तुम्हारी. तुम शब्दों में, तुम कूंची में. मुझमे तुम कितनी हो..? तुम में मै कहाँ हूँ….?

बैंडिट क्वीन

फिल्म देखा तो स्तब्ध रह गया था मै, मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा हो सकता है. किसी एक जाति की ज्यादती की तो बात ही नहीं है, क्योकि जो भी शीर्ष पर रहा है, उससे ऐसी ज्यादतियां हुई हैं.पर मानवता सबसे कम मानवों में है, कभी-कभी ऐसा ही लगने लगता है…….

खमोश सपाट बचपन, बच्ची नही बोझ थी.
सो सौप दी गयी, फ़ेरे कर सात, हैवानियत को…

उसने नोचा, बचपन फ़िसलकर गिर पड़ा.
बड़ी हो गयी वो.

बड़ी हो गयी तो उनकी खिदमत मे तो जाना ही था.

..इन्कार…,तो खींच ली गयी कोठरी के अन्दर.. ठाकुर मर्दानगी आजमाते रहे..
खड़ी हो गयी वो.

तो उन्होने उसे वही नंगी कर दिया..
जहां कभी लंबे घूंघट मे पानी भरती थी.

उन्होने उसके कपड़े उतार लिये..
तो उसने भी उतार फ़ेका..लाज समाज का चोला..
सूनी सिसकियों ने थाम ली बन्दूक. पांत मे बिठा खिलाया उन्हे मौत का कबाब..

क्योकि उन्होने उसे बैंडिट क्वीन बना दिया था….

चित्र साभार: गूगल

तुम मुस्कुरा रही हो; गंभीर

विस्तृत प्रांगण
तिरछी लम्बी पगडंडी
अभी बस हलकी चहल-पहल ,
विश्वविद्यालय में, दूर;
उस सिरे से आती तुम गंभीर,
किन्तु सौम्य, मद्धिम-मद्धिम
तुम में एक मीठा तनाव है, शायद,

हर एक-एक कदम पर जैसे
सुलझा रही हो, एक-एक प्रश्न.

तुम्हे पता हो, जैसे चंचल रहस्य.

तुम्हें ‘पहचान’ नहीं सका था, मै,
क्योंकि; देखा ही पहली बार तुम्हें ‘इसतरह’
वजह जो थी पहली बार तुम मेरे लिए…
अब नहीं लिख सकता उस महसूसे को ,,,
क्योंकि सारे शब्द बासी हैं,,
उनका प्रयोग पहले ही कर लिया गया है,

अन्यत्र…
अनगिन लोगों के द्वारा……

चित्र साभार: गूगल

दीया, तुम जलना..


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
दीया, तुम जलना..
अंतरतम का मालिन्य मिटाना
विद्युत-स्फूर्त ले आना.
दीया, तुम जलना. Diwali Diya

जलना तुम मंदिर-मंदिर
हर गांव नगर में जलना
ऊंच-नीच का भेद ना करना
हर चौखट तुम जलना

बूढ़ी आँखों में तुम जलना
उलझी रातों में तुम जलना
अवसाद मिटाना हर चहरे का
हर आँगन तुम खिलना
दिया तुम जलना

पहले पन्ने की कविता…

Diary_Pen

लिखूं,
कुछ डायरी के पृष्ठों पर कुछ घना-सघन,
जो घटा हो..मन में या तन से इतर.
लिखूं, पत्तों का सूखना
या आँगन का रीतना
कांव-कांव और बरगद की छांव
शहर का गांव में दबे-पांव आना या
गाँव का शहर के किनारे समाना या,
लिखूं माँ का साल दर साल बुढाना
कमजोर नज़र और स्वेटर का बुनते जाना
मेरी शरीर पर चर्बी की परत का चढ़ना
मन के बटुए का खाली होते जाना…
इस डायरी के पृष्ठों पर समानांतर रेखाएं हैं;
जीवन तो खुदा हुआ है ,बर-बस इसपर.
अब, और इतर क्या लिखना न कुछ पाना,
न कुछ खोना.