“…..आज इक बार फिर तेरा ना
होना नागवार गुजरा है.
वीरानी शाम में आशिक हवाओं ने मुझे
बदनाम समझा है.
पुराने जख्म अब पककर,मलहम से हाथ चाहेंगे.
सनम आ जाए महफ़िल में ,दुआं दिन रात मांगेंगे.
अभी इक दर्द का लश्कर सीने के पर उतरा है….
कहूँ साजिश सितारों की या फिर बेदर्द वक़्त ही है.
सनम ने ख़ुद मेरे लिए जुदाई की तय सजा की है.
कशमकश हो गई बेदम,हवाओं पर आसमां का पहरा है……….”
Posted by Mahfooz on नवम्बर 13, 2009 at 11:34 अपराह्न
आज इक बार फिर तेरा ना
होना नागवार गुजरा है.
वीरानी शाम में आशिक हवाओं ने मुझे
बदनाम समझा है.
! wah…… bahut sunder,……
Posted by mithilesh dubey on नवम्बर 13, 2009 at 11:51 अपराह्न
बेहद उम्दा रचना। दिल को छु गयी आपकी ये रचना।
Posted by manhanvillage on नवम्बर 14, 2009 at 4:18 पूर्वाह्न
भाई वाह अब क्या कहूं
Posted by समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ वाले on नवम्बर 14, 2009 at 6:57 पूर्वाह्न
कशमकश हो गई बेदम,हवाओं पर आसमां का पहरा है……….”
बहुत जबरदस्त भाई…आनन्द आ गया पढ़कर.
Posted by shyamalsuman on नवम्बर 14, 2009 at 7:47 पूर्वाह्न
कभी अगर वो न मिले दिल में जिसकी चाह।
छिन जातीं खुशियाँ सभी जीवन लगे अथाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
Posted by loksangharsha on नवम्बर 14, 2009 at 8:26 पूर्वाह्न
nice
Posted by गिरिजेश राव on नवम्बर 14, 2009 at 9:12 पूर्वाह्न
@ कशमकश हो गई बेदम,हवाओं पर आसमां का पहरा है
उदासी छू गई।
इतनी क्यों है?
रात देर तक लेटे रहे छत पर
जाना कि इन साँसों पर भी किसी का पहरा है ….
Posted by shreesh k. pathak on नवम्बर 14, 2009 at 9:15 पूर्वाह्न
वज़ह बताया तो….”तेरा ना होना..” Shreesh K. Pathak South Asian Studies School of International Studies Jawahar Lal Nehru University(JNU), New Delhi
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